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इंदौर….
इंदौर की एक बेटी की बुक यूनाइटेड स्टेट में पब्लिश हुई है। सरोगसी किराए की कोख की सच्चाई नाम की इस बुक में कई ऐसी महिलाओं के उदाहरण दिए गए हैं। जिन्हें 9 माह तक अपनी कोख दूसरे को सौंपने में दिक्कत होती है। इसमें उन्होंने भारत से जुड़े पहले मामले का जिक्र भी किया है। बताया जाता है कि भारत में बैन होने के बाद भी इस तरह का काम धड़ल्ले से चल रहा है। विदेश के लोग सबसे ज्यादा इंडिया से इसका फायदा उठा रहे हैं।
किताब की लेखक एडवोकेट डॉ. रूपाली राठौर ने बताया की ये किताब ना केवल सरोगेट महिलाओं को सीमित मात्रा में मिलने वाले मेडिकल खर्चों, बीमा और अधिकारों को बताती है बल्कि भारत में कमर्शियल सरोगेसी प्रतिबंधित होने के बाद भी किस तरह थोड़े से पैसे देकर ग़रीब महिलाओं के शरीर को यूज किया जा रहा है।
साथ ही उनके शरीर को किस प्रकार के हेल्थ इशू का सामना करना पड़ता ही, साथ में 9 माह किराए की कोख में रख कर सरोगेट माँ का शिशु से किस प्रकार भावनात्मक लगाव हो जाने के बाद अचानक से उस शिशु को दूसरे को देना पड़ता है। उस दर्द को भी इस किताब में बताया गया है।
भारत के सबसे पहले चर्चित केस का भी उल्लेख
इस किताब में भारत के सबसे पहले चर्चित केस का भी उल्लेख किया गया। जहां 2012 के पहले जापानी दंपती ने गुजरात के आणंद से महिला से सरोगेसी करवाई थी। इसमें भारत सरकार और जापानी सरकारी के बीच बच्ची को देश की नागरिकता देने को लेकर भी केस काफी चर्चा में रहा था।
इसके साथ ही इसके साथ ही डॉ. रूपाली ने इसमें अपने साथी एडव्होकेट कृष्ण कुम्हार कुन्हारे के साथ मिलकर मध्यप्रदेश के भोपाल,छत्तीसगढ़ के रायपुर सहित कई राज्यों के शहरों में जाकर महिला से उनकी राय ली। जो इस दौर से गुजर चुकी हैं।
एक से डेढ़ करोड़ में मिलती है कोख, कई लोगों ने किया विरोध
डॉक्टर रूपाली बताती है कि इस किताब को लेकर डाटा इकट्ठा करने में उन्हें करीब 6 साल का समय लग गया। जिसमें वह IVF सेंटर भी गई। यहां कई डॉक्टरों ने इसे लेकर विरोध जताया। लेकिन उन्होंने इसमें हार नहीं मानी ओर लगातार ऐसी महिलाओं से संपर्क कर उनसे इस मामले में जानकारी इकट्ठा करती रही।
फिल्म एक्टर्स की सरोगेसी का भी जिक्र
इस किताब में करण जौहर, शिल्पा शेट्टी और आमिर खान के बेटे को लेकर भी जिक्र किया गया है। साथ ही लेखिका ने उन महिलाओं से भी संपर्क किया। जिसके चलते फिल्मी हस्तियों के घर में खुशियां आई हैं। लेखिका ने बताया कि वैसे तो भारत में 2012 से यह बैन है। लेकिन आज भी इसे लेकर कई राज्यों में बैखौफ धड़ल्ले से इस तरह का मार्केट चल रहा है।
यूएस में किया अप्लाय जल्द ही मिला अप्रूवल
एडव्होकेट कृष्ण कुम्हार कुन्हारे ने बताया कि इस मामले में उन्होंने भारत में काफी लंबी प्रोसेस होने के चलते यूएस में अप्लाय किया था। जहां अप्रूवल जल्दी मिल गया। इसके बाद यहां बुक एक माह में पब्लिश कर दी गई। अभी इसकी पांच कॉपिया उन्हें मिली है। वैसे भारतीय मार्केट में यह बुक अमेजन पर उपलब्ध हैं। जो 175 पेज की है। इसकी अमेजन पर लगभग 500 रुपये कीमत रखी गई है।