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इंदौर….
सर, हम दो साल से दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। सारे जनप्रतिधियों से मिल चुके हैं, उनके माध्यम से पत्र आगे बढ़े लेकिन फिर भी हमें मदद नहीं मिली। कई बार जनसुनवाई में आ चुके हैं लेकिन मदद के नाम पर कुछ नहीं मिला। 1100 रु. गैस सिलेंडर के भाव है, दूध महंगा हो गया है है, बच्चों की फीस है, 6 हजार रु. की कमाई में हम कैसे गुजारा करें?
यह पीड़ा उन महिलाओं की है जिनकी पति कोरोना में मौत हो चुकी है लेकिन उन्हें कोई स्थायी मदद या आय का जरिया नहीं मिल पा रहा है। इस कारण वे काफी आर्थिक संकट में जूझ रही हैं। दरअसल, हाल ही में गौरव दिवस के आयोजन के दौरान रात को ये सभी पीड़ित महिलाएं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिली थीं।
उन्हें बताया कि शासन ने लाडली बहना योजना शुरू की है जिसमें उन महिलाओं का मदद मिल रही है जिनका परिवार साथ में है। हमारे पति की मौत हो चुकी है, आय का कोई ठोस जरिया नहीं है, स्कूलों की 6-7 हजार रु. प्रति माह में कैसे गुजारा करें।
हमारी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। इस पर मुख्यमंत्री ने मौके पर ही कलेक्टर डॉ. टी इलैया राजा को कहा कि इनकी समस्या जानकर इनका निराकरण किया जाए। इस बीच दो दिन नेपाल के प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के दौरे के चलते इन महिलाओं से संवाद नहीं हो सका।
शनिवार को अवकाश के बावजूद कलेक्टर ने इन पीड़ित महिलाओं को कलेक्टोट बुलवाया था जहां पर करीब डेढ़ घंटे तक उन्होंने महिलाओं की पीड़ा को समझा। महिलाओं ने कहा कि शासन ने सिंगल पेरेंट्स के लिए 4 लाख रु. देने की घोषणा की थी। यह मदद कुछेक को दी गई और बाद में 50-50 हजार रु. ही दिए गए।
इस पर कलेक्टर ने कहा कि सिंगल पेरेंट्स के लिए ऐसी कोई योजना ही नहीं थी, फिर भी वे कुछ करेंगे। महिलाओं ने कहा कि हर माह उन्हें 2-2 हजार रु. की सहायता शुरू की गई थी लेकिन कुछ माह देकर वह भी बंद कर दी गई।
महिलाओं ने कहा कि वे पूरी तरह टूट चुकी हैं। उन्हें न तो ससुराल पक्ष का कोई सहारा है और न ही शासन से कोई मदद मिल रही है। स्थायी तौर पर मायके में रहना भी ठीक नहीं है। बच्चों की स्कूल की फीस नहीं भर पा रहे हैं। हमारी चाहते हैं कि स्थाया रोजगार और योजनाओं का लाभ मिले जिससे परिवार का गुजर बसर हो सके।
इस दौरान कुछ महिलाओं के आंखों से आंसू छलक गए। महिलाओं ने बताया कि ऐसा कोई जनप्रतिनिधि नहीं है जिनके पास हम न गए हैं। वे मना नहीं करते और चिट्ठी आगे बढ़ा देते हैं लेकिन धरातल पर कुछ नहीं होता।
कलेक्टर ने सभी की पीड़ा सुनने के बाद कहा कि वे हर संभव मदद करेंगे। उन्होंने आश्वस्त किया कि उनका बीपीएल कार्ड बनाए जाएंगे। कोई ऐसा रोजगार उपलब्ध कराएंगे ताकि कोई परेशानी नहीं हो। इसके लिए एमआर-10 पर बन रही दुकानों के माध्यम से रोजगार उपलब्ध पर विचार किया जा रहा है। कोशिश की जा रही है कि बच्चे जिन स्कूलों में पढ़ते हैं वहां स्कूलों से समन्वय कर आधी माफ की जा सके।
महिलाओं का कहना है कि इंदौर में ऐसे 300 से ज्यादा पीडित परिवार हैं। मुख्यमंत्री को चाहिए कि वे हमारे दर्द को पहचाने। पिछले साल उन्होंने इस मामले में नृसिंह वाटिका में उनसे संवाद किया था लेकिन समयाभाव के कारण पूरा नहीं हो सका था। हम कैसे परेशान हो रहे हैं, वे एक बार फिर से समझें और जिस प्रकार लाडली बहना योजना शुरू की है वैसे ही हम सिंगल पेरेंट्स (महिलाओं) के लिए भी कोई योजना शुरू कर हमारी मदद करें।
लाडली योजना के बजाय हम पर ध्यान देते
पूजा राठौर ने बताया कि हम जनसुनवाई में कई बार चक्कर लगा चुके हैं। भोपाल गैस त्रासदी हुई थी तो उसका मुआवजा पीढ़ी दर पीढी मिल रहा है। कोरोना में जिन बच्चों के माता-पिता गुजर चुके हैं उन्हें 10 लाख रु., राशन, मुफ्त शिक्षा की सुविधा मिल रही है लेकिन हम जैसे सिंगल पेरेंट्स के परिवारों को कोई सहायता नहीं मिल रही है। हम जीवित रह गए यह हमारी गलती है। हम भी मर जाते तो बच्चों को सुविधाएं तो मिलती।
इसके अलावा शिखा बाघेला, आकांक्षा जाधव, विद्या पाटीदार, अर्चना सोलंकी, अनिता राठौर, रुचिका नीमा, भावना पारेख, पूजा चौहान, बरखा गर्ग, मेघा वर्मा, चेतना सोलंकी सहित कई पीड़ित महिलाएं हैं जो दो साल से जनसुनवाई, विधायक, मुख्यमंत्री से मिल चुकी हैं। लेकिन कोई मदद नहीं मिली।
इन पीड़ित महिलाओं का यह भी कहना है कि सरकार ने हाल ही में लाडली लक्ष्मी योजना शुरू की जिसमें 1 हजार रु. प्रतिमाह दिए जाएंगे। ये उन महिलाओं को दिए जा रहे हैं जो सक्षम हैं। लेकिन हमारे ऊपर अभी तक सरकार ने ध्यान नहीं दिया। अब सिवाय खुदकुशी के हमारे पास कोई हल नहीं है। ऐसे में बच्चों को कुछ तो मदद मिलेगी।
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… बहुत हो गया। हम दो साल से इधर-उधर चक्कर काट रहे हैं लेकिन कोई ध्यान नहीं देता। कोरोना में पति की मौत हो चुकी है। सरकार ने जिन बच्चों के माता-पिता गुजर गए हैं उन्हें तो सहायता दी है लेकिन हमारे लिए कुछ भी नहीं किया। सभी की यह पीड़ा है कि सरकार हमारी ओर ध्यान नहीं देती। पीड़िता रीना राठौर और प्रमिला माहेश्वरी तो एडीएम अभय बेडेकर व महिला एवं बाल विकास अधिकारी रामनिवास बुधौलिया के सामने अपना दर्द साझा करते-करते रो पड़ी।