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शालिग्राम शिला, आस्था का प्रतीक नहीं बल्कि केंद्र कह सकते हैं। वैष्णव मत में भगवान विष्णु का स्वरूप। इसी का उपयोग भगवान विष्णु को एक अमूर्त रूप में पूजा करने के लिए किया जाता है तो शालिग्राम की पूजा भगवान शिव के अमूर्त प्रतीक के रूप में लिंगम की पूजा के बराबर मानी जाती है।
क्या आप जानते हैं कि यह शिला कहां मिलती है और इसका?
हम बताते हैं…यह शिला सिर्फ और सिर्फ नारायणी नदी में मिलती है। नारायणी यानी गंडकी नदी इसके गंडक भी कहते हैं। यह नदी नेपाल की उच्च हिमालय पर्वतश्रेणी से निकलकर उत्तर भारत में बहती है। काली और त्रिशूल नदियों के संगम से बनी नारायणी नदी को नेपाल की पवित्र नदी माना जाता है। शालिग्राम शिला नेपाल की इसी पवित्र के तट पर मिलती है। काली व त्रिशूल के संगम से भारतीय सीमा तक इसे नारायणी नदी कहा जाता है। यह बूढ़ी गंडक नदी एक समानांतर धारा है। यह नदी दामोदर कुंड से निकलकर बिहार के सोनपुर में गंगा नदी में मिल जाती है। पद्मपुराण के अनुसार गंडकी अर्थात नारायणी नदी के एक प्रदेश में शालिग्राम स्थल नाम का एक महत्वपूर्ण स्थान है। वहां से निकलने वाले पत्थर को ही शालिग्राम कहते हैं। मान्यता है कि शालिग्राम शिला के स्पर्शमात्र से करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है। फिर यदि उसका पूजन किया जाय, तब तो उसके फल के विषय में कहना ही क्या है? वह भगवान के समीप पहुंचाने वाला है।
एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है शालिग्राम
शालिग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जिसका प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान का आह्वान करने के लिए किया जाता है। शालिग्राम आमतौर पर पवित्र नदी की तली या किनारों से एकत्र किया जाता है। शिव भक्त पूजा करने के लिए शिव लिंग के रूप में लगभग गोल या अंडाकार शालिग्राम का उपयोग करते हैं।
झुलनीपुर क्षेत्र से मैदानी भाग में प्रवेश करती है नारायणी
नारायणी नदी नेपाल की पहाड़ियों से लगभग 80 किमी की यात्रा कर नेपाल के जनपद नवलपरासी एवं बिहार प्रांत की सीमावर्ती महराजगंज के झुलनीपुर से मैदानी भाग में प्रवेश करती है। यहां से इसका नाम बड़ी गंडक या नारायणी नदी हो जाता है। यहां से इस नदी की मध्य धारा भारत एवं नेपाल राष्ट्र की सीमा को भी विभाजित करती है।
नेपाल से अयोध्या पहुंची हैं दो शालिग्राम शिलाएं
नेपाल ने दो शालिग्राम शिलाएं अयोध्या भेजी है। इनसे भगवान राम और माता जानकी की मूर्तियां बन रही हैं। ये दोनों शालिग्राम पत्थर नेपाल के जनकपुर स्थित प्रसिद्ध माता जानकी मंदिर की ओर से नेपाल के जनकपुर के रास्ते अयोध्या भेजी गई हैं।