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जानते हैं महेश गुर्जर पटेल से बगीचा लगाने की कहानी…
2013 से पहले मैं भी सभी किसानों के तरह पारंपरिक खेती करता था। इसमें एक एकड़ में करीब एक लाख का मुनाफा हो पाता था। मैंने नया प्रयोग करने के बारे में सोचा। महाराष्ट्र के नागपुर के संतरे के बारे में बहुत सुना था।
तय किया कि अब साढ़े तीन एकड़ जमीन में संतरे का बगीचा लगाऊंगा। महाराष्ट्र की नर्सरी से नागपुरी संतरे के 385 पौधे बुलवाए। उस समय एक पौधे के 30 रुपए लगे थे। पहले साल पैसे ज्यादा खर्च हुए। उसके बाद धीरे-धीरे आमदनी बढ़ती चली गई और लागत कम होती गई। अब ये पौधे मुझे 20 साल तक उत्पादन देंगे।
खेत में 18 बाय 18 फीट के अंतराल में पौधे लगाए। जिससे प्रकाश संश्लेषण बेहतर होता है और पौधों पर फूल आते हैं। पौधे लगने के चौथे साल से उत्पादन शुरू हो गया। यह 5वां साल है।
संतरे का बगीचा में घाटे की संभावना नहीं है। जब तक पौधे छोटे रहते हैं, तब तक पारंपरिक खेती चलती रहती है। तीन साल तक जैसे पहले फसल होती थी, वैसे ही हुई। जब पौधे बड़े होने लगे, तो एक साल फसल कम हुई। चौथे साल से संतरे के पौधे फसल देने लगे।
इस बार बंपर उत्पादन हुआ है। पौधों पर संतरा फल आने से पहले फूल देखकर व्यापारी ने बगीचा खरीद लिया है। मैंने इस बार साढ़े 3 एकड़ का बगीचा 10 लाख रुपए में बेचा है। इसमें लागत हटा दी जाए, तो करीब 7 लाख रुपए का प्रॉफिट हुआ है।
पौधे लगाने के चौथे साल से फल आने शुरू हो गए थे। पहले साल में 80 हजार, दूसरे साल में सवा दो लाख रुपए, तीसरे साल में साढ़े 7 लाख रुपए, चौथे साल में 8 लाख रुपए में बगीचा बेचा था। संतरे के पौधे का जीवनकाल 20 साल का होता है।
जड़ों की मजबूती के लिए करते हैं जुताई-छंटाई
पौधे लगने के बाद दो साल तक गर्मी में ज्यादा सिंचाई करना पड़ता है। उसके बाद गर्मी में कम सिंचाई होती है, ताकि जमीन को तपन मिल सके। इससे पौधे की जड़ें मजबूत होती हैं। बारिश से पहले गर्मी में ही खेत की कल्टीवेटर से जुताई करते हैं। इससे मिट्टी भी पलट जाती है। पौधे की पुरानी जड़ें भी कट जाती हैं। इसके बाद नई जड़ें आती हैं। इससे पौधे में नया पन आता है। उत्पादन हमेशा बढ़ते क्रम में होता है। इसी तरह, पौधे की सूखी डालियों को भी काटना पड़ता है, जिससे पौधा हरा-भरा दिखता है।
बगीचे में गोबर और रासायनिक खाद मिलाकर डालते हैं। गोबर खाद को खेत में ही तैयार किया जाता है। खाद को पकाने के लिए दवाओं का स्प्रे और पानी का छिड़काव करते हैं। खाद डालने के बाद पौधे के तने की पुताई करते हैं, जिससे पौधे में निकलने वाले गोंद को कंट्रोल किया जा सके।
अक्टूबर-नवंबर और फरवरी-मार्च में दो बार सीजन
संतरा की उपज के लिए दो सीजन होते हैं। अक्टूबर-नंवबर और फरवरी-मार्च। अक्टूबर में डिमांड कम होती है। अक्टूबर के सीजन में ज्यादा मेहनत नहीं करते, क्योंकि उस समय तितलियों का प्रकोप रहता है। तितलियां संतरे को चट कर जाती हैं, इसलिए फसल बर्बाद हो जाती है। दूसरा यह कि अक्टूबर में अगर अच्छा उत्पादन ले लिया, तो मुख्य सीजन यानी फरवरी-मार्च पर असर होता है। यह मार्च के सीजन को प्रभावित करता है। एक पौधे की हाइट 15 फीट होती है। जिस पर अधिकतम ढाई क्विंटल तक संतरा लगता है। अगस्त में ही व्यापारी बगीचे का सौदा कर लेते हैं।
संतरे के पेड़ की बढ़ोत्तरी के लिए 13 से 37 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान जरूरी होता है। इसकी अच्छी फसल के लिए गर्म और थोड़ी आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। अच्छी बरसात और 50 से 53 प्रतिशत आर्द्रता हो तो पौधे अच्छे से विकसित होते हैं। उत्पादन भी ज्यादा मिलता है।