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भोपाल….
मध्यप्रदेश में 7 साल बाद विधायकों के वेतन-भत्ते बढ़ने जा रहे हैं। अभी उन्हें हर महीने 1 लाख 10 हजार रुपए वेतन मिलता है, जो 40 हजार रुपए बढ़ने वाला है। इससे वेतन 1.50 लाख रुपए महीना हो जाएगा। वेतन-भत्ते बढ़ाने के लिए सरकार ने अन्य राज्यों से जानकारी बुलाई है। इसके बाद वेतन-भत्तों व पेंशन पुनरीक्षण के लिए गठित समिति इस पर फैसला करेगी।
समिति में वित्त मंत्री और संसदीय कार्यमंत्री सदस्य हैं। बता दें कि गुजरात, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में विधायकों के वेतन-भत्ते मप्र से ज्यादा हैं। इससे पहले मप्र विधायकों का वेतन साल 2016 में बढ़ा था। प्रदेश में 1972 से विधायकों को वेतन-भत्ते दिए जा रहे हैं। तब उन्हें 200 रुपए मासिक वेतन मिलता था। अभी 1.10 लाख रुपए है। यानी बीते 50 साल में इनका वेतन 550% बढ़ चुका है।
ऐसा रहता है विधायक का वेतन-भत्ता
- वेतन 30 हजार रुपए
- निर्वाचन भत्ता 35 हजार रुपए
- टेलीफोन खर्च 10 हजार रुपए
- चिकित्सा भत्ता 10 हजार रुपए
- अर्दली भत्ता 10 हजार रुपए
- सामग्री खरीदी 10 हजार रुपए
- अन्य 05 हजार रुपए
सीएम को 2 लाख तो कैबिनेट मंत्रियों को मिलते हैं 1.70 लाख रुपए
- प्रदेश में 230 विधायकों में से 31 मंत्री है। मंत्रियों को वेतन सामान्य प्रशासन विभाग देता है। मुख्यमंत्री को 2 लाख रुपए तो कैबिनेट मंत्रियों को 1.70 लाख व राज्य मंत्रियों को 1.45 लाख रुपए मिल रहे हैं।
- शेष 199 विधायकों का वेतन भुगतान विधानसभा से होता है। इनमें विधानसभा अध्यक्ष का 1 लाख 87 हजार रुपए वेतन शामिल है।
- कुल वेतन में हर महीने 2 करोड़ 14 लाख रु. का खर्च आ रहा है। प्रस्तावित बढ़ोतरी के बाद 1 करोड़ रु. हर महीने अतिरिक्त भार आएगा।
इनके मानदेय बढ़ चुके
11 साल बाद प्रदेश के नगर निगमों के महापौर का मानदेय दो गुना कर दिया गया है यानी अब तक उन्हें 13500 रुपए मिलते थे, अब 27000 रुपए मिलेगा। यह मानदेय सिर्फ 16 में 5 से 6 महापौर को ही मिलेगा। जिला पंचायत अध्यक्षों को राज्यमंत्री का दर्जा मिला हुआ है। इनका मानदेय भी दो गुना कर दिया गया है और इन्हें अब 1 लाख रुपए मिलेंगे। अभी तक मानदेय और भत्तों के साथ इन्हें लगभग 30 से 40 हजार रु. ही मिल पाते थे।
वेतन में बढ़ोतरी होना जरूरी
विधायक वेतन-भत्ता एवं पेंशन पुनरीक्षित समिति के अध्यक्ष दारनाथ शुक्ला का कहना है कि मप्र में विधायकों के वेतन भत्ते अन्य राज्यों से कम है। इसलिए यहां भी बढ़ोतरी होना चाहिए, लेकिन यह फैसला राज्य सरकार को लेना है।