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इंदौर….
नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल शुक्रवार को दो दिनी यात्रा पर इंदौर में हैं। पहले दिन शुक्रवार को इंदौर एयरपोर्ट पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित अन्य जनप्रतिनिधियों ने उनकी आगवानी की। मप्र के सीएम शिवराज पीएम प्रचंड के स्वागत से रात को डिनर तक नेपाली टोपी पहने नजर आए। इसी आकार की टोपी नेपाली प्रधानमंत्री प्रचंड ने भी पहनी थी। इस टोपी को नेपाल में क्या कहते हैं, कौन से कपड़े की बनती है और क्या है इसकी विशेषताएं। जानिए इस टोपी की पूरी कहानी…
इसके बारे में विस्तार से पता करने के लिए दैनिक भास्कर ने इंदौर में नेपाली समाज के प्रतिनिधि गजेंद्र प्रताप गुरुंग से बात की। गुरुंग ने बताया कि आज जन प्रतिनिधियों को पहनाई गई नेपाली टोपी काठमांडू से मंगाई गई है। इसे ढाका टोपी भी कहते है। क्योंकि इसे बनाने वाले महीन सूती कपड़ा बांग्लादेश की राजधानी ढाका से आयात किया जाता है।
वहीं गुरुंग ने बताया कि ढाका टोपी की ऊंचाई 3 से 4 इंच होती है। ये नेपाल के पहाड़ों और हिमालय को इंगित करती है। यह टोपी उन बर्फीले पहाड़ों का प्रतिनिधित्व भी करती है जब बर्फ पिघलने से पहाड़ के निचले क्षेत्रों में हरियाली के साथ ही रंग बिरंगे फूल खिल उठते हैं।
इसकी कीमत 150 रुपए से लेकर 15 सौ रुपए तक होती है। इसे हर मौसम के हिसाब से अलग-अलग कपड़ों से तैयार किया जाता है। ढाका टोपी को विशेष तौर पर रेशम, कॉटन और फलालेन से तैयार किया जाता है। वहीं नेपाल समाज के अन्य प्रतिनिधियों से मिली जानकारी के अनुसार नेपाल के राष्ट्रीय प्रतीक ढाका टोपी को एक ख़ास किस्म के सूती कपड़े से बनाया जाता है।
राजा महेंद्र ने ढाका टोपी को दिलाई थी राष्ट्रीय पहचान
ढाका टोपी को पहली बार नेपाल के राजा महेंद्र के शासनकाल के दौरान लोकप्रियता मिली थी। राजा महेंद्र ने 1955 और 1972 के बीच नेपाल पर शासन किया था और उन्होंने ही नेपाली पासपोर्ट और दस्तावेजों पर आधिकारिक तस्वीरों के लिए ढाका टोपी पहनना अनिवार्य किया था।
राजा महेंद्र के समय में यह टोपी काठमांडू के सिंह दरबार के पास किराए पर उपलब्ध होती थीं। इस दौरान टोपी पर कुकरी क्रॉस का बैज लगाने के बाद ही अधिकारियों को पैलेस के अंदर जाने दिया जाता था।
यूपी से भी तैयार होकर नेपाल जाता है कपड़ा
यूपी के गोरखनाथ इलाके के पुराना गोरखपुर, औरंगाबाद, जाहिदाबाद, जमुनहिया, रसूलपुर और पिंपलापुर इलाके से भी ढाका टोपी का कपड़ा तैयार होकर नेपाल जाता है। लेकिन कोविड के बाद से इन इलाकों से यह कपड़ा जाना कम हो गया है।
मिली जानकारी के अनुसार कोविड के पहले गोरखपुर से हर साल करीब डेढ़ लाख मीटर कपड़ा ढाका टोपी के लिए नेपाल भेजा जाता था। नेपाली समाज के लोगों ने बताया कि गोरखनाथ से जाने वाले कपड़े को बुनकरों द्वारा विशेष रूप से तैयार किया जाता है।
टोपी में झण्डी नुमा विशेष किस्म की डिजाइन होती है। इसे बनाने के लिए सबसे पहले डिजाइन का ग्राफ तैयार किया जाता है। फिर दफ्ती पर खाका खींचा जाता है। जिसकी डिजाइन बनारस में तैयार की जाती है। जिसके बाद जकाट को पावर लूम पर लगाकर कर टोपी के कपड़े की बुनाई की जाती है।