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भोपाल….
मध्यप्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता और साल 2013 तक प्रदेश के वित्त मंत्री रहे राघव जी को युवक से अननैचुरल सेक्स के मामले में हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि दो वयस्कों में सहमति से बने यौन संबंध अपराध नहीं हैं। इसके आधार पर भोपाल के हबीबगंज थाने में दर्ज एफआईआर को रद्द करने का आदेश दिया है। इसका मतलब है कि भोपाल की अदालत में चल रहा इस मामले का ट्रायल भी अपने आप खत्म हो जाएगा।
इसके बाद राघव जी फिर से राजनीति में सक्रिय हो गए हैं। वे अपने लिए नहीं, लेकिन अपनी बेटी के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट के लिए दावा कर रहे हैं। राघव जी के वकील शशांक शेखर ने बताया कि फरियादी ने अपनी शिकायत या बयानों में कभी भी यह नहीं कहा कि उसने यौन संबंधों का विरोध किया था। उसके पास भागने का भी मौका था, लेकिन वह उनका घर छोड़कर भी नहीं गया। इसका मतलब है कि उन संबंधों में उसकी सहमति थी।
शिकायतकर्ता ने खुद कहा है कि उसने योजना बनाकर वीडियो रिकॉर्ड किया। यानी वह जानबूझकर संबंध बनाने पहुंचा था। इस वीडियो का मकसद भी मंत्री को बदनाम करना ही था। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का नया फैसला आने के बाद 377 के तहत अपराध बनता ही नहीं है।
इस फैसले को राघव जी ने सत्य की जीत बताया है। राघव जी ने कहा इस फैसले से 10 साल से चल रही उनकी मानसिक प्रताड़ना अब खत्म हो जाएगी। वे तो 2016 से ही कह रहे थे कि उनके खिलाफ दायर एफआईआर गलत है।
सार्वजनिक जीवन में फिर सक्रिय हुए राघव जी, बेटी के लिए टिकट मांगेंगे
जबलपुर हाईकोर्ट से राहत मिलते ही राजनीतिक वानप्रस्थ में चल रहे 91 वर्षीय राघव जी की सक्रियता फिर से बढ़ गई है। उनके समर्थक घर पहुंचने लगे हैं। राघव जी सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी शिरकत करने लगे हैं। दैनिक भास्कर से बातचीत में उन्होंने कहा कि मैं 2016 से ही कह रहा हूं एफआईआर झूठी है। तब से लटकी सुनवाई अभी 2023 में पूरी हुई। अब कोर्ट ने भी कह दिया है कि एफआईआर दुर्भावनापूर्ण कराई गई थी। हाईकोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि उच्च पद पर बैठे मंत्री की छवि धूमिल करने के लिए यह सब किया गया है।
राजनीति में सक्रियता के सवाल पर राघव जी ने कहा कि मैंने 2013 में ही सोच लिया था कि अब चुनाव नहीं लड़ना है। बेटी के लिए पिछली बार भी टिकट मांगा था। इस बार भी मांगूंगा। उस हिसाब से सक्रिय राजनीति रहेगी, लेकिन चुनाव लड़ने की राजनीति नहीं करूंगा।
फरियादी बोला- मेरे कोई संबंध नहीं हैं, सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा है
हाईकोर्ट के फैसले के बाद राघव जी पर आरोप लगाने वाले शख्स ने कहा कि मैं हर महीने हाईकोर्ट जा रहा था। मई में मुझे बताया गया कि राघव जी ने आठ गवाहों की सूची दी है। सुनवाई चल रही थी। मेरा अनुमान था कि अगस्त-सितंबर तक इस पर फैसला होगा। मैं अपने वकील पर विश्वास करता रह गया। अब वकीलों ने बताया कि हाईकोर्ट ने राघव जी के पक्ष में फैसला दिया है। मैंने भी तय कर लिया है कि मैं उनको छोड़ूंगा नहीं। मेरे पास सारे सबूत हैं। मैं सुप्रीम कोर्ट जाऊंगा। इस मामले में मेरी वकीलों से बातचीत चल रही है। मुझे भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट से न्याय होगा और सत्य की जीत होगी।
10 साल पहले एक सेक्स सीडी ने मचा दिया था भूचाल
बात 5 जुलाई 2013 की है। विदिशा जिले का एक 30-32 साल का युवक भोपाल के हबीबगंज थाने पहुंचा था। उसने वहां मौजूद अफसर को एक शिकायत सौंपी। इसमें उसने तत्कालीन वित्त मंत्री और RSS-भाजपा के ताकतवर नेताओं में शुमार राघव जी पर उसके और एक नौकर के साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म का आरोप लगाया। पुलिसवालों ने पहले तो उसे डपट दिया, लेकिन उसने पुलिस को एक सीडी सौंपी, जिसमें राघव जी का पूरा सेक्स कांड रिकॉर्ड था। इसके साथ ही मध्यप्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया था।
मामला आला अफसरों तक पहुंचा। इस बीच विपक्ष भी इस मामले में सक्रिय हो चुका था। कांग्रेस ने हबीबगंज थाने का घेराव कर दिया। सरकार दबाव में थी। पुलिस ने शुरुआती छानबीन के बाद 7 जुलाई को राघव जी और उनके दो नौकरों शेर सिंह चौहान और सुरेश सिंह के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत मामला दर्ज कर लिया। उसके बाद एक के बाद एक 22 सीडी सामने आई। इनमें 79 साल के राघव जी की हरकतें देखकर पूरा देश हैरान था।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राघव जी का इस्तीफा ले लिया। बाद में उन्हें पार्टी से भी निकाल दिया गया। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया और करीब 37 दिन जेल में रहने के बाद वे जमानत पर छूटे।
विधायक के पास नौकरी की सिफारिश से शुरू हुई थी कहानी
पीड़ित युवक ने अपनी शिकायत में कहा था कि वह नौकरी की तलाश में राघव जी के चार इमली स्थित सरकारी बंगले पर पहुंचा था। सितंबर 2010 से वह वहां रहने लगा और राघव जी ने उसकी नौकरी सोम डिस्टलरी में लगवा दी थी। राघव जी उससे हाथ-पांव दबवाते थे। बाद में अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने लगे। राघव जी के प्रभाव व डर से वह सब सहता रहा।
राघव जी के बंगले में नौकर शेरसिंह और उसके साले सुरेश ने भी उसके साथ अप्राकृतिक कृत्य किया था। फरियादी ने आरोप लगाया कि वे स्मार्ट लड़कों को नौकरी का लालच देकर फंसाते हैं। ऐसे लड़के व लड़कियों को उनके पास लाने का भी दबाव डालते थे। वे गांव में किसी परिवार की लड़की से मेरी शादी कराना चाहते थे, ताकि अपना मकसद पूरा करते रह सकें। पीड़ित का कहना था, राघव जी उसे राजकुमारी और अपनी पत्नी कहते थे।
पटेरिया ने माना था कि बनवाई सीडी, बाद में संदिग्ध हालत में मौत
बाद में भाजपा नेता और मध्यप्रदेश वन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष शिव शंकर पटेरिया भी सामने आ गए थे। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने ही वित्त मंत्री राघव जी की सेक्स सीडी बनवाई है। उनका दावा था कि एक सीडी तो ट्रेन के एसी कोच की भी है। उनका कहना था कि भाजपा से गंदगी साफ करना चाहते थे, इसलिए ऐसा किया। इसके बारे में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को भी बता दिया गया था।
इस खुलासे के बाद भाजपा ने पटेरिया को भी पार्टी से निकाल दिया था। 9 फरवरी 2022 को पटेरिया सागर के मंडी बामोरा में अचेत पाए गए थे। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां पता चला कि उन्होंने जहर पी लिया है। बताया जाता है कि वे मंडी बामोरा के देव बिहारी मंदिर के पीछे बेहोशी की हालात में मिले। उन्हें पहले बीना और बाद में सागर ले जाया जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया था। 2020 में इसी मंदिर के बगीचे में एक गोलीकांड हुआ था। पटेरिया पर आरोप लगा कि उन्होंने अचिंत्य जैन नाम के युवक को गोली मार दी है। इस मामले में पटेरिया को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।
पुलिस ने 29 महीने में पेश की थी चार्जशीट
जानकारों का कहना है कि इस मामले में पुलिस की जांच शुरू से ही ढुलमुल रही। शिकायतकर्ता 5 जुलाई 2013 को थाने पहुंचा था। उस दिन उसकी शिकायत दर्ज नहीं हुई। पुलिस का कहना था, शिकायतकर्ता से ओरिजिनल शपथ पत्र मांगा गया तो वह थाने से चला गया। उसके बाद हंगामा मचा तो हबीबगंज थाने में 7 जुलाई 2013 को केस दर्ज हुआ। 9 जुलाई को राघव जी को कोहेफिजा स्थित एक फ्लैट से गिरफ्तार दिखाया गया।
दामिनी केस के बाद बदली परिस्थितियों में यौन उत्पीड़न के मामले में 45 से 60 दिनों के भीतर चार्जशीट के स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बाद भी पुलिस चार्जशीट में देरी करती रही। पुलिस ने एफआईआर के करीब 29 महीने बाद 27 नवंबर 2015 को चार्जशीट दायर की। यह तब था जब 5 जुलाई 2013 को राघव जी की सीडी सामने आने और पीड़ित की लिखित शिकायत के बाद पुलिस ने राज्य सरकार के निर्देश पर मामले की प्रारंभिक पड़ताल पहले ही कर ली थी। पुख्ता सबूत मिलने और उनके सत्यापन के बाद ही पुलिस ने राघव जी के खिलाफ मामला दर्ज किया।
ट्रायल शुरू होने के बाद हाईकोर्ट चले गए थे राघव जी
27 नवंबर 2015 को भोपाल की हबीबगंज पुलिस ने सीजेएम पंकज महेश्वरी की अदालत में राघव जी और उनके दो नौकरों शेर सिंह चौहान और सुरेश सिंह चौहान के खिलाफ चार्जशीट पेश की। इसमें अप्राकृतिक संबंधों के बारे में विस्तृत ब्योरा पेश किया था। 2016 में राघव जी ने जबलपुर हाईकोर्ट में अपने खिलाफ हुई एफआईआर के खिलाफ याचिका दायर की। इसमें एफआईआर को राजनीतिक रूप से दुर्भावनापूर्ण बताते हुए रद्द करने की मांग की थी।
सुनवाई के बाद अप्रैल 2023 में कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया। 14 जून को इस पर फैसला आया, जिसमें एफआईआर को रद्द करने का आदेश जारी हुआ। दिलचस्प यह है कि इस मामले के फैसले में पीड़ित की ओर से किसी वकील का जिक्र तक नहीं है।
अदालत ने तीन साल तक विरोध नहीं होने को आधार बनाया
अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता ने कहीं भी यह नहीं कहा है कि जब याचिकाकर्ता द्वारा अप्राकृतिक यौन संबंध का कथित अपराध किया गया था तो उसने इस तरह के कृत्य का विरोध किया। 2010 से 2013 तक यह कृत्य लगातार जारी रहा। तब शिकायतकर्ता का राघव जी के घर में आने-जाने पर कोई रोक भी नहीं थी। सभी प्रासंगिक सामग्री को देखने के बाद, न्यायालय ने यह राय बनाई कि शिकायतकर्ता वास्तव में याचिकाकर्ता की छवि खराब करना चाहता था। उसने इस तथ्य को स्वीकार किया था कि उसने प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल के नेता से संबंधित वकील के कहने पर हलफनामा तैयार किया।
शिकायतकर्ता का यह स्वीकार करना कि उसने सीडी की योजना बनाई और तैयार की, खुद शिकायतकर्ता के आचरण पर सवाल उठाता है। यह बताता है कि वह याचिकाकर्ता के खिलाफ सामग्री एकत्र करने पर तुला हुआ था, ताकि बाद के समय में यह उसके खिलाफ इस्तेमाल हो सके। अदालत ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि उसके पिता ने भी शिकायतकर्ता के खिलाफ आरोप लगाया था कि वह नशे में था और उसे उच्च पदस्थ व्यक्तियों पर आरोप लगाने की आदत थी।
कम से कम 10 साल की जेल होती
भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के प्रावधानों के मुताबिक कोई किसी पुरुष, स्त्री या जानवर के साथ प्रकॄति की व्यवस्था के विरुद्ध स्वेच्छा पूर्वक ज्यादती करेगा तो उसे आजीवन कारावास तक सजा होगी। इसके साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकेगा।
2018 से पहले इस धारा में सहमति-असहमति का कोई प्रश्न नहीं था। राघव जी के खिलाफ मामला 2013 में दायर हुआ। 2015 में निचली अदालत में आरोप पत्र भी दाखिल हो गया और अदालत ने आरोप तय कर दिए। 2016 में हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई तो केवल एफआईआर के राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित होने का आधार बनाया गया था। बाद में इसमें सहमति से बने संबंध का एंगल भी जोड़ दिया गया। अगर ये आरोप साबित हो जाते तो राघव जी को 10 साल की जेल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती थी।
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