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नर्मदा जयंती पर विशेष….
जबलपुर से राजेश शर्मा/संतोष सिंह….
नर्मदा सिर्फ नदी नहीं। उसे मां का दर्जा मिला है। ये 3 करोड़ से ज्यादा लोगों को जिंदगी देती है, लेकिन लोग ही इसे तबाह करने में लगे हुए हैं। लोगों का बोझ उठाते-उठाते नर्मदा खुद ही टूटने लगी है। उद्गम से लेकर आखिरी छोर तक मां नर्मदा का सीना छलनी किया जा रहा है। सैकड़ों नाले इसमें मिल रहे हैं। नर्मदा अविरल बहे, इसके लिए लड़ाई लड़ने वाले बहुत कम ही लोग बचे हैं। ऐसे ही दो लोगों से बातचीत की गई। एक हैं- नर्मदा के लिए 479 दिन से अनशन कर रहे भैयाजी सरकार, दूसरी हैं- नर्मदा पुत्र अमृतलाल वेगड़ की पत्नी कांता वेगड़। इन्हीं से जानिए नर्मदा की व्यथा और समाधान…
भैयाजी सरकार नर्मदा नदी के कैचमेंट एरिया को बचाने जीवित नदी का दर्जा देने की कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। भैयाजी ने कहा- नदी के तट से 300 मीटर के दायरे में निर्माण प्रतिबंधित करने के लिए सख्त कानून बनाना चाहिए। आज भी कई जिलों में नालों का गंदा पानी नर्मदा नदी में प्रवाहित हो रहा है। यदि नर्मदा के अस्तित्व को बचाना है तो इसके प्राण (हरित) क्षेत्र के संरक्षण की दिशा में कदम उठाने होंगे। नर्मदा का जलस्तर लगातार घटता जा रहा है। एक दिन ऐसा आएगा, जब नर्मदा में पानी नहीं बचेगा, इसका सिर्फ नाम ही बचेगा।
भैयाजी सरकार की मांग है कि नर्मदा को जीवित नदी का दर्जा दिया जाए। उन्होंने कहा कि अवैध उत्खनन कर नर्मदा को छलनी किया जा रहा है। मशीनों से रेत खनन पर तत्काल रोक लगाई जाए। पौधरोपण कर नर्मदा के बेसमेंट में हरियाली बढ़ाई जाए और पूजा व श्रद्धा के नाम पर नर्मदा में पूजन सामग्री बहा करके प्रदूषित न किया जाए।
नर्मदा तट के जल संग्रहण क्षेत्र और 300 मीटर के दायरे में हो रहे अवैध निर्माण के खिलाफ भैयाजी ने आंदोलन खड़ा कर दिया है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की है। याचिका पर सुनवाई के दौरान समय-समय पर महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी हो चुके हैं। इसके बावजूद पालन की दिशा में लापरवाही जारी है।
ये हैं मांगें
- नर्मदा तट से 300 मीटर दूरी तक हरित क्षेत्र का सीमांकन कर उसे प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित कर संरक्षित किया जाए।
- नर्मदा नदी को जीवंत इकाई का दर्जा देकर ठोस नीति और कानून बनाएं।
- खनन माफिया, पूंजीपतियों द्वारा हरित क्षेत्र में किए जा रहे अवैध निर्माण, अतिक्रमण, भंडारण, खनन पर तत्काल प्रतिबंध लगाकर मशीनें और अन्य सामग्री राजसात की जाए।
- अमरकंटक तीर्थ क्षेत्र में निर्माण, अतिक्रमण, खनन पूर्णत: प्रतिबंधित किया जाए।
- नर्मदा जल में गंदे नाले, विषैले रसायन का मिलना बंद कराकर अपशिष्ट द्रव्य पदार्थों के प्रबंधन के लिए ठोस कार्ययोजना लागू की जाए।
- मां नर्मदा पथ के तटवर्ती गांव नगरों को जैव विविधता क्षेत्र घोषित कर समग्र गो-नीति, गो-अभयारण्य तय किए जाएं।
घर के मटके में गंदा पानी मिला देंगे तो हम उसे पीएंगे क्या: कांता वेगड़, नर्मदा परिक्रमावासी
लेखक, चित्रकार और नर्मदा पुत्र अमृतलाल वेगड़ ने दो बार नर्मदा परिक्रमा की थी। दूसरी बार 2002 में उनकी पत्नी कांता वेगड़ भी इस कठिन और लंबे सफर में उनके साथ थीं। 86 वर्षीय कांता वेगड़ ने इस परिक्रमा में हुए अनुभव के बारे में बताया कि किस तरह नर्मदा नदी में अवैध उत्खनन किया जा रहा है। उन्होंने कहा- जब हम होशंगाबाद पहुंचे तो देखा कि नदी के अंदर बड़ी-बड़ी मशीनों से रेत निकाली जा रही है। वहां पता चला कि इसमें बड़े लोगों का हाथ है।
उन्होंने बताया कि नर्मदा से लगे गांव वाले या नाव चलाने वाले बहुत ज्यादा रेत निकालते दिखाई नहीं दिए थे, लेकिन लगभग हर शहर में नर्मदा में नालों का गंदा पानी मिलता दिखाई देता था। उन्होंने कहा- घर के मटके में गंदा पानी मिला देंगे तो हम उसे पीएंगे क्या? वैसे ही नर्मदा नदी में गंदे नालों का पानी मिल रहा है। नर्मदा नदी को इस हाल में पहुंचाने के लिए जितनी जिम्मेदारी सरकार की है, उतने दोषी आम लोग भी हैं। नर्मदा को बचाने की जिम्मेदारी हम सबकी है।
वे बताती हैं कि नर्मदा के किनारे की जगहों में बहुत परिवर्तन हुआ। अच्छा और बुरा दोनों तरीकों का। जैसे पहले सड़कें नहीं थीं, स्कूल नहीं थे। दूसरी यात्रा में यह सब मिला। नर्मदा के किनारे सारे गांव ऊपर बसे हैं। हम दिन भर की यात्रा के बाद थके-हारे शाम को जब किसी गांव में ठहरते थे, तो पानी की छोटी-मोटी जरूरत के लिए वापस नीचे आना अखरता था। अब हरेक गांव में चापाकल (हैंडपंप) लग गया है।
अमृतलाल वेगड़ ने नर्मदा की पहली पदयात्रा वर्ष 1977 में शुरू की थी। इसमें करीब 15 साल लगे, क्योंकि यह यात्रा टुकड़ों में होती रही। फिर अगली यात्रा उन्होंने पत्नी कांता वेगड़ के साथ वर्ष 2002 में शुरू की, जो करीब 6 साल चली। पहली यात्रा पौने 3 हजार किलोमीटर की थी। दूसरी यात्रा में करीब सवा 1 हजार किलोमीटर की यात्रा पूरी की। दोनों यात्राएं करीब 25 सालों के अंतराल पर हुईं। बता दें कि अमृतलाल वेगड़ को ‘नर्मदा पुत्र’ का खिताब भी मिला है। 7 जुलाई 2018 को 90 साल की उम्र में जबलपुर में उनका निधन हो गया था।
जंगल कटने से नर्मदा के तटों का क्षरण जारी
अमृतलाल वेगड़ ने अपनी किताब में लिखा है- ‘जंगलों के कटने से नर्मदा के किनारों का क्षरण हुआ। ये जंगल ही हैं जो बादलों को बुलाने के लिए हैलीपैड का काम करते हैं। नदी तो कहती है कि तुम मुझे जंगल दो, हम तुम्हें पानी देंगे। यह नदी कोई पहाड़ से बर्फ पिघलने से थोड़ी न शुरू होती है। फिर गर्मी के दिनों में भी इस नदी में पानी का मौजूद होना सामान्य बात नहीं है। पानी आज भी उतना ही है, जितना डायनासोर के जमाने में था। एक बूंद कम नहीं हुआ है। फिर पानी को लेकर यह मारा-मारी क्यों हैं। युद्ध की स्थिति क्यों आ गई है। क्योंकि, उसकी खपत बहुत ज्यादा बढ़ गई है। आबादी बहुत ज्यादा बढ़ गई है। कल-कारखानों, उद्योग-धंधों सबको पानी चाहिए।’
ऊर्जा का विकल्प तो है, पानी का नहीं
वेगड़ ने आगे लिखा- ‘जंगल काट डाले आपने। पानी तो अब और कम बरस रहा है। तो फिर नदियां प्रदूषित होंगी ही, पानी को लेकर युद्ध होंगे ही। लोग यह नहीं समझ रहे हैं कि पानी का कोई विकल्प नहीं है। ऊर्जा के कई विकल्प हैं। अगर पेट्रोल नहीं है तो डीजल है, डीजल नहीं है तो गैस है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा है। न दूध, न शहद, कोई पानी का विकल्प नहीं है। पानी की एक-एक बूंद मूल्यवान है, इसलिए हमको लोगों को समझाना होगा कि रसायन न केवल नदियों को प्रदूषित करते हैं, बल्कि वो रिसकर जमीन में जाते हैं और जो भूगर्भ जल है उसे भी विषाक्त करते हैं।’
jsamachar
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