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रतलाम/इंदौर….
सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. अज़हर हाशमी के हिन्दी ग़ज़ल संग्रह ‘मामला पानी का’…. का वरिष्ठ पत्रकार संपादक डॉ. क्रांति चतुर्वेदी ने वर्चुअल विमोचन किया. विमोचन पश्चात् डॉ. चतुर्वेदी ने इस ग़ज़ल संग्रह की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि- प्रो. अज़हर हाशमी जी का ग़ज़ल-संग्रह ‘मामला पानी का’ हिन्दी साहित्य को अमूल्य सौगात है. वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि हाशमी ज़ी हिन्दी साहित्य की कई विधाओं पर अधिकार पूर्वक लिखते हैं. संस्मरण से लेकर व्यंग्य तक, निबंध से लेकर मुक्तक तक, अतुकांत कविता से लेकर गीत और ग़ज़ल तक हाशमी ज़ी की विलक्षण प्रतिमा से पाठको का साक्षात्कार होता है. खास बात यह है कि कई विधाओं में लिखने के बावजूद हाशमी ज़ी मूलत: गीतकार और ग़ज़लकार पहले हैं तथा अन्य विधाओं के रचनाकार बाद में….
94 ग़ज़लों का संग्रह है ‘मामला पानी का’….
संदर्भ प्रकाशन, भोपाल द्वारा प्रकाशित ”मामला पानी का” गजल संग्रह में 94 ग़ज़लें हैं. हर ग़ज़ल कोई-न-कोई संदेश देती है. कुछ शेर या काव्य-पंक्तियां तो ऐसी हैं कि बेहद सरल भाषा में संदेश दे जाती हैं कि- जो शख्स तेरे दुख में तेरे साथ खड़ा था / कद उसका फ़रिश्ते से कहीं ज्यादा बड़ा था…. ग़ज़ल संग्रह के कुछ शीर्षक पाठकों को पढ़ने के लिए आकर्षित करते हैं. जैसे- इतवार के अखबार जैसी मां, न्याय है पिता’, ‘सूरज @ मकर संक्रांति’, ‘आग की बारिश’, ‘रिश्तों’ से गायब गर्माहट की कस्तूरी’, ईद मुबारक’, ‘वन घायल हैं’, ‘डरी सी नदियां, ‘दिल की धड़कन सही तो सही ज़िन्दगी’, ‘कार’ से भी ज्यादा संस्कार ज़रूरी’, ‘चल पड़ा मौसम पहनकर कोहरे की वरदी….’
भूमिका यह कि…. कोई भूमिका नहीं
सबसे उल्लेखनीय तो यह है कि प्राय: हर पुस्तक में किसी-न-किसी द्वारा लिखित भूमिका होती है, परंतु हाशमी ज़ी ने ‘मामला पानी का’ में नवाचार करते हुए कहा है; भूमिका यह कि… कोई भूमिका नहीं. प्रो. हाशमी ज़ी का यह हिन्दी ग़ज़ल संग्रह पाठकों को तो पसंद आएगा ही, नवोदित ग़ज़लकारों के लिए भी पाठशाला की तरह होगा…. साभार….