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सुप्रीम कोर्ट ने समान पोस्ट-समान वेतन पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले को खारिज कर दिया है। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की बेंच ने कहा है कि एक एम्पलॉयी केवल पोस्ट, नेचर या काम समान होने के कारण दूसरे एम्पलॉयी से अपनी सैलरी की समानता का दावा नहीं कर सकता है। मामला मध्य प्रदेश राज्य वर्सेस सीमा शर्मा से जुड़ा था।
बेंच के मुताबिक समान वेतन का कॉन्सेप्ट तभी लागू हो सकता है जब एम्पलॉइज को हर तरह से समान परिस्थितियों में रखा गया हो। केवल पोस्ट, समान कार्य और काम की क्वॉन्टिटी एक जैसी होने से सैलरी में भी बराबरी नहीं की जा सकती है।
लाइब्रेरियन ने की थी यूजीसी नियमों के तहत सैलरी की मांग
मामला शासकीय धनवंतरी आयुर्वेदिक कॉलेज, उज्जैन की सीमा शर्मा से जुड़ा है, जिन्हें लाइब्रेरियन कम म्यूजियम असिस्टेंट नियुक्त किया गया था। 8 साल की सर्विस के बाद सीमा ने हायर एजुकेशन डिपार्टमेंट के कॉलेजों की तरह सैलरी दिए जाने का दावा किया था। राज्य ने इसे एक्सेप्ट नहीं किया, इसलिए सीमा ने मध्य प्रदेश शिक्षा सेवा (कॉलेजिएट शाखा) भर्ती नियम, 1990 (“1990 नियम”) के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
राज्य प्राधिकरण ने दायर की सुप्रीम कोर्ट में याचिका
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सीमा को उच्च शिक्षा विभाग के तहत कॉलेजों के लाइब्रेरियन की तरह सैलरी देने यूजीसी के नियमों का पालन करने का निर्देश दिया। राज्य प्राधिकरण की इंट्रा कोर्ट अपील खारिज कर दी गई थी, इसलिए अधिकारी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। राज्य की अपील को स्वीकार करते हुए और हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए, पीठ ने कहा- सैलरी निर्धारण नीति का विषय है। कोर्ट केवल उन रेयर केस में ही हस्तक्षेप कर सकते हैं जहां एक ही ट्रिब्यूनल में अपॉइंट एम्पलॉयी के दो सेटों के बीच भेदभाव होता है।
इसलिए सीमा शर्मा को नहीं मिल सकता समान वेतन
मध्यप्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि 1990 के नियम प्रतिवादी पर कभी भी लागू नहीं होते थे। 1990 के नियम हायर एजुकेशन डिपार्टमेंट के तहत आने वाले संस्थानों पर लागू थे और शर्मा को जिस कॉलेज में नियुक्त किया गया था वह उच्च शिक्षा विभाग के नहीं बल्कि मध्य प्रदेश सरकार के आयुष विभाग के अधीन था।
आयुष विभाग के तहत संस्थानों पर लागू नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो संस्थानों के कर्मचारियों के लिए यूजीसी के वेतनमान को लागू करता हो।
JSamachar.com
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