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ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी और द्वादशी तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करने की परंपरा है। इन दो दिनों में सुबह जल्दी उठकर तीर्थ-स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा होती है। इसमें पंचामृत से भगवान का अभिषेक किया जाता है। दिन में जल दान करने के बाद व्रत के दौरान फलाहार किया जाता है। पुराणों के मुताबिक, इन दो दिनों में भगवान विष्णु की पूजा करने पर अश्वमेध यज्ञ करने जितना पुण्य मिलता है। 26 मई, गुरुवार को अपरा एकादशी है और इसके अगले दिन शुक्रवार को त्रिविक्रम द्वादशी व्रत किया जाएगा।
अपरा एकादशी और त्रिविक्रम द्वादशी का महत्व…
अपरा एकादशी (26 मई, गुरुवार): इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान किया जाता है। इस दिन पानी तिल डालकर नहाने से जाने-अनजाने हुए पाप खत्म हो जाते हैं। पद्म पुराण और महाभारत में बताया गया है कि ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि पर व्रत करने के साथ ही अन्न और जल का दान करना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान बताया गया है।
महत्व: ऐसा करने से हर तरह के कष्ट और पापों का नाश होता है। इससे मोक्ष मिलता है। इसलिए इसे अपरा एकादशी कहा गया है। इसकी कथा के मुताबिक धौम्य ऋषि के कहे अनुसार एक राजा ने इस व्रत को कर के प्रेत योनि से मुक्ति पाई थी। वहीं, पांडवों का भी बुरा समय इस व्रत के प्रभाव से दूर हुआ था। इस दिन दिए गए दान से कई गुना पुण्य फल मिलता है।
त्रिविक्रम द्वादशी (27 मई, शुक्रवार): अपरा एकादशी के अगले दिन त्रिविक्रम द्वादशी व्रत किया जाता है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान किया जाता है। ये न कर पाएं तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहा सकते हैं। इसके बाद तिल मिले जल और पंचामृत से भगवान विष्णु के त्रिविक्रम रूप या वामन अवतार का अभिषेक किया जाता है। फिर अन्य पूजन सामग्री के साथ तुलसी पत्र खासतौर से चढ़ाया जाता है।
महत्व….
ज्येष्ठ मास की द्वादशी का व्रत करने से हर तरह का सुख और वैभव मिलता है। ये व्रत कलियुग के सभी पापों का नाश करने वाला व्रत माना गया है। विष्णु पुराण में बताया गया है कि इस दिन तीर्थ स्नान और व्रत कर के भगवान विष्णु की पूजा करने से अश्वमेध यज्ञ करने जितना फल मिलता है। इस द्वादशी के पुण्य से पितर भी संतुष्ट हो जाते हैं।